परिचय:दीक्षा का अर्थ है – शिष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाना, आत्मा को गुरु से जोड़ना। यह एक पवित्र कर्म है, जो केवल निस्वार्थ भाव से किया जाना चाहिए।लेकिन आज कुछ लोग दीक्षा को एक ‘पैकेज’ बना चुके हैं –
₹30,000 या उससे अधिक!Achal Nath इसका स्पष्ट उदाहरण हैं, जो धर्म के नाम पर व्यापार कर रहे हैं।📿 दीक्षा का असली स्वरूप:शास्त्रों में दीक्षा:दीक्षा गुरु द्वारा नि:स्वार्थ रूप से दी जाती है।उसमें पैसे, जाति या सामाजिक हैसियत की कोई शर्त नहीं होती।सच्चे गुरु का स्वभाव:वह शिष्य से केवल श्रद्धा, समर्पण और सेवा चाहता है – पैसे नहीं।“गुरु का कार्य है देना, लेना नहीं।”सन्यास और व्यापार साथ नहीं चल सकते:जो व्यक्ति पैसे लेकर कृपा देता है, वह साधक नहीं, व्यापारी है।
🚫 Achal Nath का दीक्षा मॉडल:₹30,000 – ₹51,000 में दीक्षा पैकेज:अन्य जातियों के लोगों से भारी रकम वसूलना।“दक्षिणा” के नाम पर मजबूरी और डर का उपयोग करना।ब्राह्मणों को फ्री दीक्षा:क्या आध्यात्मिक ज्ञान जाति देखकर बाँटा जाता है?यह स्पष्ट जातिवाद और भेदभाव है।कुंडली और भय दिखाकर शोषण:”अगर दीक्षा नहीं ली तो कष्ट होगा” – इस प्रकार की बातें कहकर मानसिक दबाव बनाना।प्रचार और वीडियो में दीक्षा का नाटक:सोशल मीडिया पर दीक्षा कार्यक्रमों के वीडियो, जिसमें सैकड़ों लोगों से पैसे लेकर “गुरु बनने” का दिखावा।


तो जैसा कि यहां बताया गया है जो है बुनियादी नियम एक अघोरी होने के जिसमें नहीं गुरुजी शादी शुदा हो नहीं उन्हें सम्पति का लालच हो नहीं ही उन्हें किसी चीज का भय हो। अब 2 तसवीरों में माता जी दिख रही हैं ये हैं गुरुजी जो हैं अघोरी उनकी पत्नी और उनके गले में सुवर्ण आभूषण अब वो क्या कह रहे हैं?? किसने पैसे दिये?? यानी गुरुजी आज भी सांसारिक सुख में फंसे हैं। चलो गुरुजी को इस सारे मोह से मुक्त करें.. हमारे देश को असली अघोरियों की ज़रूरत है।
❗ क्या यह धर्म है या व्यापार?”जब दीक्षा का भावनात्मक सौदा बनने लगे, तब समझिए यह धर्म नहीं, व्यापार है।”अघोरी दीक्षा पैसे से नहीं मिलती – वह तप और समर्पण से प्राप्त होती है।Achal Nath जैसे लोग लोगों की भक्ति को बेच रहे हैं।🙏 जनता से जागरूकता की अपील:”जो गुरु आपके भक्ति और भय को व्यापार बना दे, उससे दूरी बनाना ही बुद्धिमानी है।”अगर कोई कहता है:“₹30,000 दो तभी दीक्षा मिलेगी”“ब्राह्मण हो तो फ्री, बाकियों को फीस”तो समझ जाइए – यह कोई साधु नहीं, बल्कि धार्मिक व्यवसायी है।
📢 अंतिम शब्द:”दीक्षा धन से नहीं,श्रद्धा से मिलती है।””जो गुरु बनकर भी व्यापारी हो..