परिचय:

“अघोरी हूं, सन्यासी हूं” – यह वाक्य आज एक नारा बन चुका है। पर जब कोई व्यक्ति घर में पत्नी-बच्चों के साथ रहता है, संपत्ति का मालिक है, और फिर भी खुद को अघोरी बताता है, तो वहाँ धर्म नहीं, धोखा है।

इस ब्लॉग में हम बात करेंगे Achal Nath की — जो समाज में अघोरी और सन्यासी का मुखौटा पहनकर, असल में एक गृहस्थ और व्यापारी जैसा जीवन जी रहे हैं।


🏠 Achal Nath का गृहस्थ जीवन:

  1. पत्नी और बच्चे:
    • Achal Nath सार्वजनिक रूप से खुद को अघोरी कहते हैं, पर उनके बच्चे और पत्नी मौजूद हैं
    • सन्यास का पहला नियम है – “गृहस्थ जीवन का त्याग”, जिसे ये पूर्ण रूप से तोड़ते हैं।
  2. संपत्ति और धन:
    • उनके पास जमीन, मकान, गाड़ी और दुकान जैसी कई चीजें हैं।
    • क्या ये अघोरी जीवनशैली है?
  3. धार्मिक व्यापार:
    • दीक्षा के लिए ₹30,000 या उससे अधिक शुल्क लिया जाता है।
    • ब्राह्मण बच्चों को दीक्षा मुफ्त दी जाती है, बाकियों से जाति देखकर पैसे लिए जाते हैं।
  4. सोशल मीडिया प्रचार:
    • वीडियो, फोटो, फेसबुक, यूट्यूब – हर जगह खुद का प्रचार।
    • क्या असली अघोरी कभी अपने नाम का विज्ञापन करता है?

🔥 क्या ये अघोर परंपरा है?

अघोर परंपरा में:

  • त्याग, सेवा और मौन को महत्व दिया जाता है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  • धन, जात-पात और मोह से दूर रहना ही साधना की नींव है।

Achal Nath इन सभी आदर्शों के विपरीत कार्य करते हैं।

तो अब सवाल ये है कि इस वीडियो में कितने ऐसे बच्चे हैं जो ब्राह्मण नहीं हैं और जिन्हें गुरुजी पढ़ा रहे हैं?? और क्या इस वीडियो में गुरुजी इन्हें पढ़ रहे हैं या किसका अनुष्ठान करा रहे हैं ??? और अगर अनुष्ठान करा रहे हैं तो क्या वो मुफ्त में करा रहे हैं या अपने यजमान से धन की अपेक्षा कर रहे हैं?? क्या अनहोने ऐसे अनुष्ठान कोई नाम पे किसी भी पैसे के लिए है ??


🚫 लोगों को भ्रमित किया जा रहा है:

Achal Nath:

  • अघोरी का चोला पहनकर लोगों की आस्था का शोषण कर रहे हैं।
  • ब्राह्मणों को मुफ्त और पिछड़ी जातियों से पैसे लेकर जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • धर्म को व्यवसाय बना चुके हैं।

⚠️ भक्तों से आग्रह:

“जो खुद को अघोरी कहे और जाति पूछे, वह गुरु नहीं, ठग है।”
“जो परिवार में रहकर सन्यास का नाटक करे, वो साधक नहीं, अभिनेता है।”


📢 अंतिम शब्द:

“Achal Nath का अघोरी होना वैसा ही है जैसे कोई व्यापारी खुद को त्यागी कहे।”
सच्चा साधक पहचानता है कि सन्यास शब्दों से नहीं, जीवनशैली से सिद्ध होता है।